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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 3 

समय का पहिया कितनी तेजी से घूमता है , पता ही नहीं चलता । हम अपनी मस्ती में मगन , अपनी धुन में लगे रहते हैं । मंजिल की तलाश में दिन रात अपने लक्ष्य का पीछा करते रहते हैं । ऐसे में समय का ध्यान किसे रहता है ? आज देवयानी 20 वर्ष की सुंदर युवती बन गई और उसके समक्ष 27-28 वर्ष का एक खूबसूरत चक्रवर्ती सम्राट खड़ा था तो यह मुकाम देवयानी ने कोई पलक झपकते ही हासिल नहीं कर लिया था । इसके लिए उसने 20 सावन इंतजार किये थे । उसकी आंखों के सामने से बहारों का मौसम 20 बार गुजरा था । ऐसा नहीं है कि प्रेम की घटाऐं उसके आंगन में आकर बरसी नहीं हो । घटाऐं भी आईं, सावन भी आया और जमकर बरसात भी हुई मगर वह इस बरसात में भी भीग नहीं सकी थी । कुछ बूंदें उस पर पड़ी अवश्य मगर इन तुच्छ बूंदों से वह तृप्त नहीं हो सकी थी । 

आज उसे अपने बचपन से लेकर यौवन तक की समस्त घटनाऐं याद आने लगीं । जब वह पांच वर्ष की थी तब उसकी लड़ाई शर्मिष्ठा से हो गई थी । वही शर्मिष्ठा जो अपने आपको न जाने क्या समझती थी मगर देवयानी ने उसे कभी अपने से ज्यादा सुंदर , महत्वपूर्ण नहीं माना था । माना कि वह महान दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थी पर इससे क्या होता है ? अगर वह दैत्यराज की पुत्री थी तो देवयानी उसके पिता के गुरू शुक्राचार्य की लाडली पुत्री थी । तो आप ही बताइये कि कौन ज्यादा बड़ी थी ? एक राजकुमारी या महान दैत्य वंश के सबसे महान गुरू शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी ? इसके अतिरिक्त देवयानी का सौन्दर्य हजारों रतियों को भी दग्ध कर देने वाला था । आखिर वह इण्द्राणी शची की पुत्री जयंती की पुत्री थी । शची का सौन्दर्य तो वैसे भी त्रैलोक्य प्रसिद्ध था । शची के लिए न जाने कितने देव , दानव , नर, गन्धर्व और यक्ष पागल थे मगर शची तो पति परायण स्त्री थी और उसका शील भी उसके सौन्दर्य की भांति त्रैलोक्य प्रसिद्ध था । स्वर्ग लोक के अस्थाई राजा नहुष ने शची को प्राप्त करने के लिए न जाने क्या क्या यत्न किये थे । साम, दान, दण्ड, भेद सब आजमा लिये लेकिन वह शची को प्राप्त नहीं कर सका था । ऐसी मानिनी की पुत्री थी जयंती । वह अपनी माता शची से किसी भी प्रकार से कमतर नहीं थी । 

स्वर्ग लोक की समस्त अप्सराऐं जब शुक्राचार्य की तपस्या भंग नहीं कर सकी थीं तब इन्द्र ने जयंती को भेजने का निर्णय लिया था । उस दिन घर में कितना कोहराम मचा था । शची ने इन्द्र के इस निर्णय का पुरजोर विरोध किया था और कहा था कि "राज कार्य में परिवार को बीच में नहीं लाना चाहिए । जयंती उस समय महज 18 वर्ष की तरुणी थी जो कली से अभी फूल बन ही रही थी । भोर की लाली की तरह सौन्दर्य उसके अंग अंग से प्रस्फुटित हो रहा था । उसका अंग प्रत्यंग एक मनोहर उद्यान बना हुआ था । ऐसे में उसे शुक्राचार्य जैसे क्रोधी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए भेजना बहुत जोखिम भरा कार्य था । न जाने शुक्राचार्य क्या श्राप दे दें और बेचारी जयंती उस श्राप का भार पूरी जिंदगी उठाये ? वो भी अपने पिता के स्वार्थ के लिये" ? शची के स्वर में क्रोध था   

मगर इन्द्र पर इसका कोई असर नहीं हुआ । उसने तय कर लिया था कि शुक्राचार्य की तपस्या भंग करने के लिए जयंती को भेजना उचित है । यह तो कोई अच्छा निर्णय नहीं था । मगर जयंती ने भी अपने पिता का ही साथ दिया था । उसे शायद अपने रंग , रूप , नाक नक्श और सौन्दर्य पर कुछ अधिक ही अभिमान था और वह समझती थी कि वह अपने सौन्दर्य के बल पर किसी भी पुरुष के हृदय को मथ सकती है इसलिए वह भी इस अभियान के लिए तुरंत तैयार हो गई थी । जब बाप बेटी दोनों राजी हो गए तो मां बेचारी कब तक विरोध का झंडा थामे रखती ? वह भी शांत हो गई । 

हुआ यूं कि सृष्टि रचना के आरंभिक काल में ब्रह्मा जी के 6 मानस पुत्र हुए । इन मानस पुत्रों में एक महर्षि अंगिरा भी हुए थे । उनके ब्रहस्पति नामक पुत्र था । ब्रह्मा जी के और पुत्रों में एक महर्षि भृगु भी हुए । उनका विवाह दैत्य वंश के उत्पत्ति कर्ता हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या या ख्याति के साथ हुआ । भृगु और दिव्या के एक पुत्र उत्पन्न हुए जिनका नाम काव्य शुक्र था जो आगे शुक्राचार्य के नाम से बड़े प्रसिद्ध हुए । कहते हैं कि महर्षि भृगु बहुत तेजस्वी थे इसलिए उनका क्रोध भी उनकी नाक पर ही रहता था । 

एक बार ब्रहाम्ड के तीनों देवताओं ब्रह्मा,  विष्णु और शंकर में बहस छिड़ गई कि इन तीनों में सबसे बड़ा कौन है ? तीनों भगवान अपने आपको सबसे बड़ा बता रहे थे लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था । तब सब देवताओं और ऋषि मुनियों ने महर्षि भृगु को निर्णायक नियुक्त कर उन्हें सबसे बड़ा भगवान घोषित करने का कार्य सौंप दिया । महर्षि भृगु अपने कार्य को अंजाम देने के लिए चल दिये । 

परीक्षा लेने के लिए वे सबसे पहले कैलाश पर्वत पहुंचे । उन्हें शिवजी के गणों ने द्वार पर ही रोक लिया और कहा कि शिव शंकर भगवान अभी नशे में लीन हैं । महर्षि भृगु तेजस्वी तो थे ही, क्रोधी भी थे । वे इंतजार में घंटों बैठने वाले व्यक्ति नहीं थे इसलिए उन्होंने भगवान शंकर को श्राप दे दिया "हे महादेव ! आप नशे में लीन हैं । नशा तमोगुण का प्रतीक है । अत : हे शंकर ! आप तमोगुण के स्वामी बनेंगे । तब से भगवान शंकर तमोगुण के स्वामी बन गये । 

इसके बाद महर्षि भृगु ब्रह्मा जी की परीक्षा लेने ब्रह्मलोक में पहुंच गये । उस समय ब्रह्मा जी एक सभा में बैठे हुए थे और अपने कार्य में व्यस्त थे । उन्होंने महर्षि भृगु को कोई भाव नहीं दिया । इससे महर्षि भृगु को बहुत तेज गुस्सा आ गया और उन्होंने ब्रह्मा जी को "रजोगुण का प्रधान स्वामी बना दिया । 

इसके पश्चात वे भगवान विष्णु के लोक बैकुण्ठ धाम गये । वहां क्या देखते हैं कि भगवान विष्णु शेषनाग रूपी शैय्या पर सो रहे हैं और लक्ष्मी माता उनके चरण दबा रही हैं । यह दृश्य देखकर महर्षि भृगु क्रोधित हो गये । उन्होंने सोचा कि भगवान विष्णु उनकी उपेक्षा कर रहे हैं और जान बूझकर सोने का उपक्रम कर रहे हैं जबकि वे सोये नहीं हैं  । ऐसा जानकर उन्होंने क्रोध में भरकर भगवान विष्णु की छाती में जोर की एक लात मार दी । इससे भगवान विष्णु की नींद खुल गई और उन्होंने महर्षि भृगु के पैर पकड़ लिये । भगवान ने भृगु जी के पैर पकड़ कर कहा "हे तत्वज्ञ ! आपके पैर तो बहुत ही कोमल हैं और मेरी छाती हिमालय पर्वत सी कठोर है । आपके इस कृत्य से आपके कोमल पैरों में मोच आ गई होगी । हे तपस्वी , मुझे आदेश दें मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं" । भगवान विष्णु की शालीनता और धैर्य ने महर्षि भृगु का हृदय जीत लिया और उन्होंने भगवान विष्णु को सबसे बड़ा भगवान घोषित कर दिया । इसके बाद ही इस दोहे की रचना हुई 

क्षमा बड़ेन को चाहिए छोटन को उतपात । 
कहा हरि को घट गयो जो भृगु ने मारी लात ।।

ऐसे महान ऋषि भृगु के पुत्र थे शुक्राचार्य । एक महान पिता के गुण तो उनमें आने ही थे इसलिए वे भी महान ऋषि हो गये । इसके अतिरिक्त दैत्यराज हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या उनकी मां थी तो दैत्यों के गुण भी उनमें आने थे इसलिए शुक्राचार्य में न केवल दैवीय गुण थे अपितु दैत्य गुण भी थे । उनकी शिक्षा महर्षि अंगिरा की देखरेख में होने लगी । महर्षि अंगिरा के पुत्र ब्रहस्पति और शुक्राचार्य दोनों साथ साथ शिक्षा लेने लगे । 

क्रमश : 

श्री हरि 
20.4.23 
 

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2 Comments

Gunjan Kamal

23-Apr-2023 07:45 PM

👏👌

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Muskan khan

21-Apr-2023 06:21 PM

Nice

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